मुझसे सवाल किया गया है कि मेरी सभाओं में लोगों का आकर “प्रभु यीशु को स्वीकार करने” का क्या मतलब है और क्या में इसके अंजाम की गंभीरता समझता हूँ?
बहुत ही सरल सा जवाब है।
- हाँ, लोग प्रभु यीशु को स्वीकार करते हैं।
- उसे जगत का मुक्तिदाता या उद्धारकर्ता स्वीकार करते है।
- उसकी पवित्रता को स्वीकार करते हैं।
- उसकी दीनता, नम्रता और प्रेम को स्वीकार करते हैं।
- प्रभु यीशु सत्य है, ये स्वीकार करते हैं।
- प्रभु यीशु परमेश्वर के पुत्र हैं, ये स्वीकार करते है।
स्वीकार करते हैं कि प्रभु यीशु के वचनों द्वारा सब अस्तित्व में आया है।
स्वीकार करते हैं कि पवित्र परमेश्वर के पुत्र यीशु का लहू हमारे अपने पापों की कीमत अदा करने के लिए बहा था।
स्वीकार करतेे है कि मृत्यु पर जय पाने वाले प्रभु यीशु उन्हें भी मृत्यु से जीवित करेंगे और शाश्वत अमर जीवन देंगे।
हाँ स्वीकार करते हैं कि प्रभु यीशु दोबारा संसार में लोगों के देखते आएंगे और न्याय का समय आयेगा।
स्वीकार करते हैं कि स्वर्ग और पृथ्वी के बीच ऐसा और कोई नाम नहीं है जिसे लेकर मुक्ति मिल सके।
हाँ सच है लोग स्वीकार करते हैं।
लेकिन वे किसी धर्म में दाखिल नहीं होते है। वे परमेश्वर के राज्य में प्रवेश करते हैं।
प्रभु यीशु लोगों को धर्मों में भटकाने के लिए नहीं परंतु वे तो लोगों को धर्मों के अंधकार से निकाल कर स्वर्ग राज्य में ले जाने के लिए आये थे।
बस यही स्वीकार करते हैं ।
और हाँ, जहाँ तक अंजाम का सवाल है, प्रभु यीशु ने कहा है, “इस से बड़ी मोहब्बत नहीं कि कोई दूसरे के लिये अपनी जान दे।”
शिष्य थॉमसन
हे यीशु
praise the lord
respected sir
your all videos are really good
may god help you in your ministry
Dear beloved pastor ji i want to talk you becouse i m also against of all corruption in Christian organisation and church.
Pastors are working for their prosperity life and they are not working with holiness. I m also a pastor .
यशू
JAI MASIH KI
HALLELUYEH
Your all messages is very good