“परमेश्वर और धन में समानता है”
(आगे पढ़ें ‘धन’ की परिभाषा और परिणाम)
वो ये कि,
भरोसा दोनो में से बस एक पर ही किया जा सकता है ।
प्रभु यीशु कहते हैं,
“तुम परमेश्वर के साथ साथ धन की भी सेवा नहीं कर सकते” मत्ती ६:२४
भरोसे के मामले में,
मुकाबला परमेश्वर और शैतान के बीच नहीं है, पर परमेश्वर और धन के बीच है।
इसका अर्थ है आपके जीवन में जिस तख्त पर परमेश्वर को बैठना चाहिए वहां पर आप धन को बैठा सकते हैं।
एक जीवित है तो दूसरा बेजान (मूरत समान)
* तो आखिर “धन” की परिभाषा क्या है?
धन वो “शक्ति” है जो हमें हर स्थिति का सामना करने और संसार में सफल होने का ‘झूठा’ भरोसा दिलाती है
धन = पैसा + संपत्ति + ज्ञान + शिक्षा +परिवार + धर्म + कर्म + तंत्र + सामाजिक पहुंच + राजनीतिक पहुंच
परमेश्वर का वचन कहता है ‘धन’ के पंख होते हैं और वो पक्षी की तरह हमारे पास से उड़ जाता है। नीतिवचन २३:५, हमारा भरोसा भी हवा में उड़ जाएगा।
* तो परिणाम क्या होता है
धन हमें कबर तक तो सही सलामत पहुंचा देगा, ऊपर शायद मकबरा भी बनवा दे।
या हमारी चिता की लकड़ियां सजवा दे।
या ईसाई कब्रिस्तान में हमारे लिये संगमरमर का क्रूस लगवा दे।
लेकिन उसके आगे धन की पहुंच नहीं है।
धन शक्ति है, मनुष्य का प्रयास है, सामर्थ है, मनुष्य द्वारा उपजाया हुआ फल है। जिसे कीड़े खा लेते हैं।
धन हमारे शरीर और स्वार्थ को खड़ा करता है।
धन पर भरोसा हमें पाप से मन फिराने या मुक्ति दिलाने में काम नहीं आता है।
प्रभु यीशु क्या दावा करते हैं?
“मैं ही पुनरूत्थान और जीवन हूँ जो कोई मुझ पर भरोसा करता है वो मृत्यु वश नहीं होता पर शाश्वत जीवन पाता है”
आज सवाल है,
भरोसा किस पर है?
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