कमर बाँध, अंगोछा कस कर,
जल ले बैठूं चरण कमल पर,
मुझको भी शक्ति दो प्रभुवर,
मैं सेवक बन जाऊं… (1)
तुमने ही तो सिखलाया था,
खुद करके भी दिखलाया था,
मुझको भी तुम शिष्य बनालो,
मैं सेवक बन जाऊं… (2)
सेवा मैं लेने नहीं आया,
सेवक बनकर हूँ मैं आया,
मुझको भी ये शक्ति दे दो,
मैं सेवक बन जाऊं… (3)
सुबह शाम मैं दुआ करूँगा,
चरणों पर बैठा भी रहूँगा,
मुझको अपना दर्शन दे दो,
मैं सेवक बन जाऊं… (4)
दुश्मन को दुश्मन ना कहूँगा,
मित्र सभी का सदा रहूँगा,
मुझको ऐसा मन तुम दे दो,
मैं सेवक बन जाऊं… (5)
ले जाएँ बेगार में जब वे,
हो जाए जब पावँ थके ये,
मुझको चलने का बल तुम दो,
मैं सेवक बन जाऊं… (6)
जब वे झूठी बात गढ़ें तब,
मिल जुलकर अपमान करें सब,
मुझको दो तुम क्षमा शक्ति तब,
मैं सेवक बन जाऊं… (7)
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चाहे सताएं मुझको हरदम,
श्राप सुनाएं क्रोध न हो कम,
मुझको आशीर्वाद वचन दो,
मैं सेवक बन जाऊं… (8)
जो है बड़ा वो बने ही छोटा,
जो हो प्रधान, गुलाम सभी का,
मुझको झुकने की महिमा दो,
मैं सेवक बन जाऊं… (9)
मन को दीन करो मेरे तुम,
नम्र हृदय दो दान प्रभु तुम,
मुझको झुकने की गरिमा दो,
मैं सेवक बन जाऊं… (10)
भूखों को तुम धन्य कहे हो,
प्यासों को जल तुम देते हो,
मुझको भी संतुस्ट बना दो,
मैं सेवक बन जाऊं… (11)
दया दिखाएं दया वो पाएं,
कृपा करें जो, कृपा वो पाएं,
मुझको तुम अनुग्रह ऐसा दो,
मैं सेवक बन जाऊं… (12)
मेल मिलाप का काम मुझे दो,
सबको प्रेम प्रचार करे जो,
मुझको ख्रिस्त स्वरुप बना दो,
मैं सेवक बन जाऊं… (13)
दुःख सहने के इस आनंद को,
दर्द उठाने के संयम को,
मुझको तुम सतगुण ये दे दो,
मैं सेवक बन जाऊं… (14)
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नमक कहा था तुमने हमको,
ज्योत, तमस को मिटाती है जो,
मुझको यह जीवन तुम दे दो,
मैं सेवक बन जाऊं… (15)
इतना तुम मुझे ऊंचा कर दो,
वध-स्तम्भ पर मुझको जड़ दो,
मुझको अपनी महिमा दे दो,
मैं सेवक बन जाऊं… (16)
क्रोध को मुझसे दूर करो तुम,
गर्व, घमंड को चूर करो तुम,
मुझको संत बना दो प्रभु तुम,
मैं सेवक बन जाऊं… (17)
आँख से आँख का बदला न लूं,
दांत से दांत को भी ना तोडू,
मुझको बस वो ज़ख्म दिखा दो,
मैं सेवक बन जाऊं… (18)
दोष न में किस पर भी लगाऊं,
मार्ग, सत्य, जीवन को दिखाऊं,
मुझको मेरा कपट दिखा दो,
मैं सेवक बन जाऊं… (19)
तुमने कहा, मांगो, ढूँढो तुम,
पाओगे, खटखटाओ जब तुम,
मुझको तुम यह मन्त्र सिखा दो,
मैं सेवक बन जाऊं… (20)
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शक्ति प्रयोग में नहीं करूँगा,
चमत्कार से नहीं जिऊंगा,
मुझको अपनी आत्मा दे दो,
मैं सेवक बन जाऊं… (21)
बंधुओं से में मिला करूँगा,
कंगालों की सुधि रखूँगा,
मुझको कुचले लोग दिखा दो,
मैं सेवक बन जाऊं… (22)
बेघर को घर दे दूँ अपना,
नंगों को पहना दूँ कपडा,
मुझको दान का वर दो दाता,
मैं सेवक बन जाऊं… (23)
सारे जगत में जाकर प्रभु मैं,
गली, गाँव, बस्ती, घर घर में,
मुझको, अपना वचन, प्रभु दो,
मैं सेवक बन जाऊं… (24)
स्वर्ग छोड़कर ताज तजे तुम,
स्वर्ण सिंहासन से उतरे तुम,
मुझको भी सिखला दो प्रभु तुम,
मैं सेवक बन जाऊं… (25)
क्रूस उठाकर फिरा करूँगा,
कर इनकार मैं जिया करूँगा,
मुझको मरने का वर दे दो,
मैं सेवक बन जाऊं… (26)
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