“मुंह बंद रखने का वरदान”
मेरा सोचना है। की ये एक बड़ा वरदान है जो पवित्र आत्मा हमें दे सकता है।
मुंह बंद रखने के लिए पवित्र आत्मा की सामर्थ चाहिए।
प्रभु यीशु के जीवन से संबंधित एक वाक्य ने मुझे बहुत प्रभावित किया है। वो यशायाह नबी की किताब में लिखा है।
“उसने अपना मुँह न खोला” – यशायाह ५३:७
क्या प्रभु यीशु के पास अपने बचाव के लिए बोलने को कुछ नहीं था । क्या उसके शब्द कमज़ोर थे? वो जिसने अपने वचन से सारी सृष्टि को बनाया था?
एक कविता लिखी है मैंने #प्रभु #यीशु के खामोश रहने पर
——————————————–
नहीं सोचा था फिर भी खामोश रहोगे
(कविता)
टूट पड़े थे हम सब तुम पर
न आओ गलियों और घर पर
दर दर तुम्हें निकाला हमने
नहीं सोचा था फिर भी खामोश रहोगे
छीन लिया तुमसे सब हमने
अधिकारों का हनन था हमने
न्याय को छीना था जब मिलकर
नहीं सोचा था फिर भी खामोश रहोगे
छीने कपड़े थे फाड़े थे
लूट लिया तुमको जब हमने
बेच दिया जब कुछ सिक्कों में
नहीं सोचा था फिर भी खामोश रहोगे
झूठी दी थी गवाही हमने
निर्दोषी को पकड़ा हमने
धोकेबाज़ कहा जब तुमको
नहीं सोचा था फिर भी खामोश रहोगे
भाग रहे थे शिष्य तुम्हारे
दुश्मन जब आकर के घेरे
बंधक तुम को बना रहे जब
नहीं सोचा था फिर भी खामोश रहोगे
भीड़ ने जब कर दी थी बगावत
क्रूस चढ़ाने की थी बाबत
नारेबाज़ी हो हुल्लड़ में
नहीं सोचा था फिर भी खामोश रहोगे
थप्पड़ गाल पर मारा हमने
कांटे ताज जड़ा सर हमने
कोड़े गिन गिन मारे तुझको
नहीं सोचा था फिर भी खामोश रहोगे
अपमानित किया तुझको हमने
बैंजनी वस्त्र और थूक हमने
मारपीट अधमुआ किया जब
नहीं सोचा था फिर भी खामोश रहोगे
कहा था उतरो क्रूस से हमने
बचो बचाया सबको तुमने
कतरा कतरा लहू बहा जब
नहीं सोचा था फिर भी खामोश रहोगे
कदम कदम पे नकारा हमने
हर दिन तुझे सताया हमने
बुरा हर नाम दिया था तुझको
नहीं सोचा था फिर भी खामोश रहोगे
क्यों ये ज़ुल्म सहा सब तुमने
कैसे प्रेम किया, क्यों तुमने
कीलें ठोकी थी जब हमने
नहीं सोचा था फिर भी खामोश रहोगे
रोता हूँ बिलखता हूँ मैं
ज़ख्म देख ज़ख्मी खुद हूँ मैं
मुझ कातिल को साथ ले जाने
नहीं सोचा था फिर भी खामोश रहोगे
यशायाह 53:7
आज सवाल है
क्या उसकी तरह खामोश रहने की ताकत है ?
——————————————–