कुँए पर बैठा आदमी कहीं मसीह तो नहीं

कुँए पर बैठा आदमी कहीं मसीह तो नहीं ? – यूहन्ना ४

मूर्खता की बात तो लगती है। और वो भी एक गंवार सी औरत के मुंह से। और सच तो ये है कि आत्मिक बातें तो मूर्खता लगतीं हैं और इसीलिए तो उन्हें मानने के लिए विश्वास की आवश्यकता है।

“क्योंकि जब परमेश्वर के ज्ञान के अनुसार संसार ने ज्ञान से परमेश्वर को न जाना तो परमेश्वर को यह अच्छा लगा, कि इस प्रचार की मूर्खता के द्वारा विश्वास करने वालों को उद्धार दे।” – १ कुरुंथी १:२१

यदि तुम जानती और पहचानती तो मांगती।

परमेश्वर सत्य और आत्मा से भजने वाले भक्तों को ढूंढता है। न जानना, न पहचानना अंधकार है।
तुम सत्य को जानोगे और सत्य तुम्हे बंधन से आज़ाद करेगा।

सामरी स्त्री की गवाही क्या थी। यह कि उसने मुझे सब कुछ बता दिया।

उसका अपना जीवन झूट से भरा था। कभी किसी को सीधा जवाब शायद नहीं दिया था। कपट और बस धोखा, न ही उससे किसी ने उसके जीवन के कड़वे सच को बताया था।
सामरी स्त्री का प्रचार – आओ देखो उसे। इस से बड़ा कोई प्रचार नहीं होता जो अपना नहीं पर मसीह का प्रचार करे।

वो जो कुँए पर बैठा है कहीं मसीह तो नहीं?

सामरियों ने गांव के बाहर कुँए पर बैठे यीशु को जगत का उद्धारकर्ता मान लिया।

और आज ये आलम है कि क्रूस पर लटकते मसीह को देख कर भी हमारा विश्वास कमज़ोर है।
जब तक चमत्कार की चमक न दिखे तो कुछ न लगे।

आप का क्या ख़याल है ?

कुँए पर बैठा हुआ आदमी मसीह है?

शिष्य थॉमसन